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लगे रहो अरविन्द भाई….!

अड़ो,लड़ो,बढ़ो....
अड़ो,लड़ो,बढ़ो....
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  एक बार आपने पुनः दिखा दिया कि भारतीय युवक आप से इतने प्रभावित क्यों हैं,क्यों आप पर इतना भरोसा करते हैं।आज 26 अगस्त 2012 का घेराव कार्यक्रम भ्रष्टाचार विरोधी आन्दोलन का महत्वपूर्ण अध्याय होगा।अपने बुजुर्ग अन्ना जी को कष्ट दिये बिना जिस तरह से इस आन्दोनल को सफलता पूर्वक सम्पन्न किया गया यह वर्तमान समय की मांग थी। किरन जी से थोड़ा मतभेद होने पर भी जिस तरह से आप ने ठोस निर्णय लिया एवं अपनी टीम द्वारा योजनाबद्ध तरीके से इस कार्यक्रम को संचालित किया इससे सरकार का थिंक टैंक भी हतप्रभ रह गया। कभी मैट्रो सेवा निलंबन का निर्णय,कभी इसकी बहाली,कभी गिरफ्तारी और फिर कुछ देर मे ही रिहाई,कभी आधे अधूरे मन से लाठी चार्ज ,पानी की बौछार तो कभी आंसू गैस। लेकिन इन सभी कार्यवाहियों में प्रशासन का आत्मविश्वास नहीं दिखाई दिया।
   एक साथ कई मोर्चों पर सफलता पूर्वक संघर्ष करके आपने अपने नेतृत्व क्षमता को भी सिद्ध कर दिया। इससे यह भी स्पष्ट हो गया कि अरविन्द केजरीवाल का संदेश-आदेश ही पर्याप्त है न कि उनकी उपस्थिति ही। पुनः आज का आन्दोलन भी युवा प्रधान ही था,जोश से भरे युवा वर्ग ने  जिस अनुशासन की अपेक्षा थी वैसा अनुशासन बनाये रखा। आज देश को ऐसे ही नेतृत्व की आवश्यकता है। हमे ऐसे ही साहसी नेतृत्व की आवश्यकता थी जो पूरे साहस के साथ अपने लक्ष्य के लिये क्षणिक लाभ या हानि की परवाह किये बिना सभी भ्रष्टाचारियों से एक साथ मोर्चा ले सके।
   जे.पी. आन्दोलन की तरह यह बहुत ही सरल था कि मात्र कांग्रेस का विरोध कर के अन्य सभी राजनीति का धंधा करने वाली पार्टियों को एक जुट कर के सत्ता बदल दी जाये, किन्तु उससे जनता का कोई लाभ नही होता।एक चोर के हाथ से दूसरे चोर के हाथ तिजोरी की चाभी लग जाती। आपने सच कहा कि देश में कोई विपक्ष है ही नहीं, सब मिल के देश को लूट रहे हैं। कांग्रेस केंन्द्र मे तो भाजपा प्रदेशों में भ्रष्टाचार में लिप्त है। सपा, बसपा जैसी पार्टियां सी.बी.आई. के डर से कांग्रेस के तलुए चाटती रहीं हैं क्योंकि दोनों के विरूद्ध एक नहीं कई मामले सी.बी.आई. में लंबित हैं और ये लंबित रहेंगे ही। इन राजनैतिक दलों की निर्लज्जता किसी जागरूक व्यक्ति से छिपी नहीं है। कहीं कोई नेता मंहगाई पर खुशी व्यक्त करता है तो कहीं सरकारी बैठक में विभाग का मंत्री जो उस प्रदेश के मुख्यमंत्री का चाचा है,अधिकारियों का चोरी करने की सीख और खुली छूट देता है। ऐसे लोगों को चेतावनी देने तक का प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री का साहस नहीं है।
    अरविन्द जी, बहुत से विचारक आज के आन्दोलन मे सर गिन कर हिसाब-किताब लगा रहे होंगे कि इस आन्दोलन में भीड़ थी कि नहीं। वे आन्दोलन में भाग लेने वाले युवाओं की भावनाओं को किस पैमाने से नापेंगे वही जानें।किराये की भीड़ और आन्दोलनरत जनसमूह में वे भेद नहीं करना चाहते।  आलोचनाएं तो होती ही रहेंगी। कुछ लोगों जिन्होने अपने आप को किसी न किसी राजनैतिक पार्टी के हाथों बेच दिया है, अपनी लड़ाई तो उनके विरूद्ध भी है,उनकी आलोचना की क्या परवाह। लेकिन उन आलोचनाओं को अनदेखा नहीं किया जो सकता जो तटस्थ लोगों द्वारा की जाती हैं। कुछ लोग आप को महात्वाकांक्षी कहते हुए आप को सत्तालोलुप तक कह दे रहे हैं किन्तु वे आपकी ये बात नहीं सुनना चाहते कि यदि जनलोकपाल, राइट टू रिजेक्ट,राइट टू रीकाल कानून एक साल के समय में बना दिये जाते हैं तो आप चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे।अपने उच्च सरकारी पद पर रह कर या इसी भ्रष्टतंत्र का हिस्सा बन कर ऐशो आराम का जीवन आप व्यतीत कर सकते थे उसे त्याग कर जिस आनिश्चिततापूर्ण,संघर्ष के रास्ते पर आप निकल पड़े हैं कुछ पेशेवर आलोचकों को उसमे भी कुछ काला ही नजर आता है। विडम्बना तो यह है कि कुछ लोग अन्ना जी, रामदेव जी और आपकी टीम की आलोचना भी करेंगे और भ्रष्टाचार पर घड़याली आंसू भी बहायेंगे और यदि इनसे यह पूछ लिया जाये कि इन लोगों से बेहतर कौन है जिसके नेतृत्व में संघर्ष किया जाय तो ये मनमोहिनी मौन धारण कर लेते हैं।
    आप यूँही लगे रहिये,आपने जगाया है तो हमे नेतृत्व भी दीजिये। आतिशीघ्र अपने दल का गठन करिये जिससे ये आन्दोलन दिल्ली से बाहर निकल कर गांव गांव मे,नगर नगर में फैल सके।
जयहिन्द!

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